सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: तेज रफ्तार और लापरवाही से सड़क हादसे में मौत पर नहीं मिलेगा मुआवजा
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक बेहद महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिससे देशभर में सड़क सुरक्षा और बीमा दावों को लेकर एक नई दिशा तय हो सकती है। यह फैसला उन मामलों पर सीधे असर डालेगा, जिनमें वाहन चालक की खुद की लापरवाही या तेज रफ्तार ड्राइविंग के कारण उसकी मौत हो जाती है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु उसकी खुद की गलती, लापरवाही या तेज रफ्तार में वाहन चलाने के कारण होती है, तो उसके परिजनों को बीमा कंपनी से मुआवजा नहीं मिलेगा। बीमा कंपनियां ऐसे मामलों में मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होंगी।
किस मामले पर आधारित है यह फैसला?
यह फैसला 18 जून 2014 को हुए एक सड़क हादसे से जुड़ा है। उस दिन एक व्यक्ति अपनी Fiat Linea कार चला रहा था जिसमें उसके पिता, बहन और भतीजी भी सवार थे। हादसे में उसकी मौत हो गई। परिजनों ने दावा किया कि टायर फटने के कारण गाड़ी पलटी और दुर्घटना हुई। लेकिन पुलिस जांच और चार्जशीट में सामने आया कि दुर्घटना का कारण टायर फटना नहीं, बल्कि व्यक्ति की लापरवाही और तेज रफ्तार से ड्राइविंग थी।
80 लाख रुपये के मुआवजे का दावा ठुकराया गया
मृतक की पत्नी, बेटा और माता-पिता ने बीमा कंपनी “यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस” के खिलाफ 80 लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया था। उनका कहना था कि मृतक की मासिक आय 3 लाख रुपये थी और वह परिवार का इकलौता कमाने वाला सदस्य था।
हालांकि, मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने इस दावे को खारिज कर दिया। अधिकरण ने कहा कि मृतक एक “Self-Tortfeasor” यानी खुद की गलती से हादसे का शिकार हुआ है, इसलिए उसे ‘पार्टि’ नहीं माना जा सकता।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी
कर्नाटक हाई कोर्ट ने अधिकरण के फैसले को सही ठहराया और सुप्रीम कोर्ट ने 2009 के ‘निंगम्मा बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस’ केस का हवाला देते हुए निर्णय को बरकरार रखा। उस केस में भी कहा गया था कि यदि मृतक की गलती से हादसा होता है, तो बीमा कंपनी मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम का उद्देश्य निर्दोष पीड़ितों की सहायता करना है, न कि उन लोगों के परिजनों को मुआवजा देना जो खुद अपनी जान जोखिम में डालते हैं।
निष्कर्ष
यह फैसला न केवल बीमा कंपनियों के लिए दिशानिर्देश तय करता है, बल्कि आम जनता को भी यह संदेश देता है कि लापरवाह और तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि परिजनों के भविष्य के लिए भी बड़ा खतरा है।